मंगलवार, 11 जुलाई 2017

"उसने कहा था" ...

चंद्रधरशर्मा गुलेरी जी के जन्मदिन के मौके पर आज डीडी भारती पर उनकी मशहूर कहानी `उसने कहा था` पर बनी टेलीफिल्म आ रही थी।... फ्रांसीसी मोर्चे पर जर्मनों से मुकाबले के बीच लहना सिंह(किरण कुमार) जख्मी पड़ा था। टांग और छाती में गोली लगी थी, लेकिन लहना सिंह की जान अपने सूबेदार हजारा सिंह(रजा मुराद) और उसके बेटे भोला में अटकी हुई थी। आखिर सूबेदारनी और 'अपनी लाजो' से लाम पर जाने से पहले उसने एक वादा जो किया था। बचपन में देश की धरती पर जन्मा प्रेम का रंग परदेश में और गाढ़ा हो रहा था। साथी सिपाही वजीरा(पेंटल) फ्रांस की भीषण ठंड के बीच लहना सिंह की कुर्बानी पर जब भी उसे टोकता तो लहना सिंह का जवाब होता- तुम नही समझोगे।
टेलीफिल्म का एक दूसरा दृश्य : लहना सिंह की चाची जब लाम पर जाने की खबर से डर जाती है तो लहना सिंह का जवाब होता है- फौजी को देश की रक्षा वास्ते जंग पर जाना पड़ता है । वहीं नजदीक के गांव में ही सूबेदारनी भी लाम पर जा रहे पति और बेटे को लेकर चिंता में डूबी है। सूबेदार हजारा सिंह का ठसक भरा जवाब होता है- उनका नमक खाया है तो नमकहलाली तो करनी ही पड़ेगी।
टेलिफिल्म के इन दृश्यों से गुजरते हुए बरबस ही उस फेसबुक पोस्ट की याद आ गयी, जिसमें प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा के दौरान उनके हैफा स्मारक जाने की आलोचना की गयी थी। टिप्पणी करने वाले का विरोध इस बात को लेकर था कि हैफा में जर्मनों और तुर्की के सैनिकों के खिलाफ मुकाबले में मरे ब्रिटिश भारतीय सैनिक अग्रेंजों की तरफ से लड़ रहे थे।
क्या देश, राष्ट्र , धर्म, नमक की परिभाषाएं स्पष्ट, स्थिर, निरपेक्ष और ठोस है ? क्या सौ साल पहले और अब इन शब्दों के मायने एक से हैं ? वर्तमान की आंखों से क्या अतीत को न्यायपूर्ण तरीके से देखा जा सकता है ? मुझे लगता है कि हैफा में मरे ब्रिटिश भारतीय सिपाहियों को नीची निगाहों से देखने वालों को ' उसने कहा था' एक बार जरुर देखनी चाहिए।... फिर भी वे नही समझ पाये तो ऐसे में लहना सिंह का जवाब ही दोहराया जा सकता है कि- तुम नही समझोगे।

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