शुक्रवार, 3 जून 2016

“दुनिया वालों से दूर, जलने वालों से दूर ... “

कई महीनों से कहीं घूमने नही जा पाने की वजह से बीवी के निशाने पर था । घूमने के मुद्दे पर घमासान वार्ता चल ही रही थी कि अचानक एक क्षण ऐसा आया जब घूमने की तिथि पर न्यूनतम साझा सहमति बन गयी। हालांकि जाना कहां है, इस पर पक्के तौर पर मुहर नही लगी।

      इन्हीं दिनों हम कॉपरनिकस मार्ग के अपने ऑफिस से टहलते-टहलते सफदर हाशमी मार्ग के कोने पर खड़े हिमाचल भवन के करीब से गुजर ही रहे थे कि शिमला जाने का विचार अकस्मात उभरा। अंदर ही हिमाचल टूरिज्म वालों का एक छोटा सा ऑफिस है। हमारे दिए दिनों में उनके शिमला के होटलों में बस एक दिन की ही बुकिंग उपलब्ध थी । हिमाचल टूरिज्म वालों ने चैल जाने का विकल्प सुझाया - चैल पैलेस में बचे दूसरे दिन के लिए कमरा खाली था । छत्तीस के छत्तीस न सही लगभग बत्तीस-तैंतीस गुण तो मिल ही गए। बस-होटल की बुकिंग कर-कराकर ही हम वापस लौंटें ।
शिमला

चैल पैलेस


       कुछ ऐसा ही वाकया कुछ सालों पहले हुआ जब राजकुमार हिरानी की टीम को थ्री इडियट्स की शूटिंग के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज से अनुमति नही मिली तो चैल पैलेस विकल्प के तौर पर अचानक से उभरा और बेचारे रणछोड़ दास चांचड़ के बाप के भस्म में परिवर्तित होने के बाद के दृश्य यहां फिल्माए गए।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज

चैल पैलेस


         वैसे कहने वाले तो यह कहते हैं कि पाटियाला के राजा भूपिंदर सिंह जब वायसराय की बेटी को शिमला से भगाकर ले गए तो शिमला उनके लिए दिल्ली-दूर हो गया । फिर चैल उनके लिए विकल्प के तौर पर उभरा। राजा साहब तो ठहरे राजा साहब .... उन्होंने चैल में अपना डेरा-डंडा जमा लिया। चैल है भी बेपनाह खूबसूरती समेटे, ऊपर से तुर्रा यह कि ऊंचाई भी शिमला से ज्यादा । ऊंचाई का जिक्र-ए-अंदाज ऐसा कि सुनाने वाले ने अभी-अभी इतिहास में छलांग लगायी हो राजा साहब के और चौड़े हुए सीने को अभी-अभी इंच-टेप से पैमाइश की हो या फिर वायसराय को उनकी बग्घी से ढ़केल कर अभी-अभी लौटा हो । कहने वाले तो ऐसे कहते हैं मानो राजा साहब उनके सामने ही वायसराय की सुपुत्री को लेकर चंपत हो गए हों। कुछ कहते हैं कि बेटी वायसराय की नही थी कमांडर-इन-चीफ लॉर्ड किचनर की थी। हालांकि ठोस इतिहास कहता है कि राजा साहब बमुश्किल एक साल के थे जब चैल पैलेस ने आकार लिया। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में स्कैंडल प्वांइट की लेखिका मंजू जेदका कहती है कि हो सकता है कि इस कहानी का जुड़ाव भूपिंदर सिंह से न होकर उनके पिता राजिंदर सिंह से हो। वो कहती है कि इस बात के प्रमाण है कि राजिंदर सिंह की एक अंग्रेज पत्नी थी , जिनसे उन्हें एक बेटा भी हुआ था । उनके मुताबिक भूपिंदर सिंह के इस कहानी का किरदार होने की वजह उनकी रंगीन तबियत हो सकती है।... वैसे 'वायसराय की बेटी और महाराजा की दंतकथा' ने किन परिस्थितियों में जन्म लिया , कब कौन सी करवट ली और कैसे वायसराय , लॉर्ड किचनर और चैल पैलेस इससे जुड़ते चले गए, यह जानना रोचक होगा। समय का समंदर कुछ चीजों को अपने पेटे में ले लेता है और कुछ को उछालकर किनारे पटक देता है। शायद कभी भविष्य में इस दंतकथा के पीछे की सत्यकथा भी उद्घाटित हो।

         शिमला की भीड़भाड़ से दूर हम चैल पैलेस पहुंचे तो समय ठहर सा गया । दिल्ली की भागमभाग और शिमला की चहल-पहल चैल पैलेस के चारों तरफ फैले विशालकाय देवदार पेड़ों को लांघ नही पायी । वर्तमान को पृष्ठभूमि में ठेलकर इतिहास मंच पर मुख्य भूमिका में था । अंदर रेस्तरां में फिल्म उजाला का गाना बज रहा था- दुनिया वालों से दूर , जलने वालों से दूर ... आ जा, आ जा चलें कहीं दूर ...। 

          चैल पैलेस की ऊंची छतों और एंटीक फर्नीचर वाले रेस्तरां में बैठे फिल्म दाग का राजेश खन्ना का वो डायलॉग भी याद आया – "इज्जतें , शोहरतें,चाहते, उल्फतें... कोई भी चीज दुनिया में रहती नही ... आज मैं हूं जहां कल कोई और था ...ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था ।" चैल की खूबूसरत सुरंग से होकर मैं अतीत, वर्तमान और भविष्य में एक साथ डुबकी लगाने लगा । .... मैं अपने-आप में सिमटता जा रहा था । चैल एक सुखद संयोग था, स्मृतियों में संजोने लायक । बताते चलें कि राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और राखी अभिनीत हिट फिल्म दाग के कुछ दृश्य चैल में फिल्माए गए।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें